Tally ERP 9 in Hindi
Chapter - 1
Tally ERP 9 in Hindi
Introduction of Accounting
Objective :-
(1) एकाउंटिंग क्या है?
(2) एकाउंटिंग के महत्व क्या हैं?
(3) एकाउंटिंग की डेफिनेशन
(4) एकाउंटिंग के रूल्स और प्रकार
Accounting in Hindi:
एकाउंटिंग यह एक प्रोसेस है जिसमे, जिसमे बिजनेस की आर्थिक जानकारी को समझना, रिकॉर्ड करना, सारांस निकलना और रपोट बनायी जाती है जिससे फिननेसियल स्टेटमेंट के रूप में निर्णय लेने में आसानी होती है /
Advantages of Accounting in Hindi:-
निम्नलिखित एकाउंटिंग के एडवांटेज हैं-
(1) एकाउंटिंग में अगर हमें कभी प्रॉफिट या लॉस हुआ है इसका पता लगाया जा सकता है।
(2) हम अपना व्यापर की फीन्सियल पोज़िशन को समझ सकते हैं
* हमारे व्यापर में कितनी संपत्ति है।
* व्यापर पर कितना उधार है।
* व्यापर में कितनी पूंजी (Capital) है।
* हमारे व्यापर में कितनी संपत्ति है।
* व्यापर पर कितना उधार है।
* व्यापर में कितनी पूंजी (Capital) है।
(3) इसके अलावा, हम एकाउंटिंग रखने से व्यापर के लाभ हानि कारणों को समझ सकते हैं।
(4) ऊपर पड़ी गयीं कुछ बातों से पता लगता है हमारे व्यापर में कितनी ताकत है।
Tally ERP 9 in Hindi
Definition In Accounting in Hindi
दोस्तों एकाउंटिंग सीखते समय हमें कुछ जरुरी बातें ध्यान रखनी चाहियें। तो चलिए हम इन शब्दों का मतलब समझते हैं-
(1) Goods :- माल को कितने रूपए में खरीदा और बेचाजाता है। उदारहण के लिए- एक किराना दूकान में दाल,चीनी आदि सामान है। फायदे की खरीद और माल की बिक्री पर निर्भर करता है।
(2) Assets :- एसेट्स का मतलब कुछ कीमती चीजें होती हैं जो लम्बे समय तक चलती हैं और व्यापर की संपत्ति होती हैं। उदारहण के लिए- बिल्डिंग,मशीनरी,फर्नीचर आदि।
(3) Liabilities :- लिएबिलिटीज़ का मतलब होता है। की जब हम किसी और की द्वारा अपने व्यापर को शुरू करते हैं वो लिएबिलिटीज़ होता है उदारहण के लिए जैसे- बैंक से लिया गया लोन,उधार सामान खरीदना ये सब लिएबिलिटीज़ में आते हैं।
(4) Capital :- कैपिटल का मतलब होता है की मालिक के द्वारा किया गया निवेश। जैसे कैपिटल कैश, गुड्स या एसेट्स के रूप में होता है। जब की यह कैपिटल व्यापार के मालिक द्वारा इन्वेस्ट किया गता है, व्यपय के अनुसार यह कैपिटल भी एक लाइअबिलटीज़ होती है।
(5) Debtor :- जब व्यक्ति अपने व्यापर के लिए किसी से धन राशि लेता है उसे डेब्टर कहते हैं।
(6) Creditor :- जब हम अपने व्यापर से किसी को धनराशि देते हैं उसे क्रेडिटर कहते हैं।
(7) Business Transaction :- यह एक वित्तीय घटना है जो व्यापर से सम्बंधित है जिसका असर कंपनी की वित्तीय स्थिति पर पड़ता है। उदारहण के लिए - माल की खरीद,वेतन,क्रेडिट पर माल को बेचना।
(8) Cash Transaction :- जो नकदी में किये जाते हैं उन्हें कॅश ट्रांजेक्शन कहते हैं।
(9) Credit Transaction :- जो ट्रांजेक्शन क्रेडिट परखिये जाते हैं उन्हें क्रेडिट ट्रांजेक्शन कहते हैं।
(10) Account :- अकाउंट किसी ट्रांजेक्शन या बैंक का स्टेटमेंट होता है, जो किसी एसेट्स,लाइअबिलटीज़, आदमी या खर्चे को प्रभावित करता है।
(11) Ledger :- लेड़गेर एक किताब है जिसमें पर्सनल,रियल, या नॉमिनल के सभी अकाउंट होते हैं, जिनकी एंट्री जर्नल खता किताब में होती है।
Types of Accounts in Hindi:
1) Personal Accounts:- सभी व्यक्ति,सोसायटी,ट्रस्ट,बैंक,और कंपनियों के पर्सनल अकाउंट होते हैं। उदारहण के लिए - Aman Account A/c, Mayank Sales A/c, Gaurav Traders A/c, State Bank of India A/c.
2) Real Accounts:- रियल अकाउंट में सभी एसेट्स और गुड्स शामिल होते हैं। जैसे- Cash A/c, Furniture A/c, Building A/c.
3) Nominal Accounts:- व्यापर से सम्बंधित सभी आय और खर्च नॉमिनल अकाउंट में आते हैं। उदाहरण के लिए - Salary A/c, Rent A/c, Advertisement A/c, Electricity Bill A/c.
Accounts Rules in Hindi :-
दोस्तों जब हम अपने व्यापर से किसी को ट्रांजेक्शन करते हैं तब हमें डेबिट और क्रेडिट का फैसला करना पड़ता है। इसके कुछ नियम हैं आइये इन्हे जानते हैं।
Personal Accounts:- Debit : The Receiver or Credit : The Giver or Creditor.
Real Accounts :- Debit : What comes in Credit : What Goes out.
Nominal Accounts :- Debit : All Expenses & Loss Credit : All Income & Gains.
Double Entry System :-
हर ट्राब्जेक्शन व्यापर को दो तरीकों से प्रभावित करता है। उदारहण के लिए,
(A) गुड्स कैश में ख़रीदा- इस ट्रांजेक्शन में गुड्स बिज़नेस में आ रहा है लेकिन उसी समय कैश बिज़नेस से बाहर जा रहा है।
(B) गुड्स क्रेडिट पर अग्रवाल ट्रेडर्स को बेचा- इस ट्रांजेक्शन में गुड्स बिज़नेस से बाहर जा रहा है ओर उसी समय अग्रवाल ट्रेडर्स हमारे व्यापर का देनदार हो जाता है।
डबल एंट्री सिस्टम के अनुसार- ऐसे सभी बिज़नेस ट्रांजेक्शन की अकाउंट में एंट्री करते समय इसके दो पहलु होते हैं Debit aspect (Receiving) और Credit Aspect (Giving)
दोस्तों इसके बाद अभी Chapter-2 भी आएगा जिसमें में आपको और भी आगे की जानकारी दूंगा
अगर आपको अच्छा लगे तो इसे शेयर करना न भूलें।
(5) Debtor :- जब व्यक्ति अपने व्यापर के लिए किसी से धन राशि लेता है उसे डेब्टर कहते हैं।
(6) Creditor :- जब हम अपने व्यापर से किसी को धनराशि देते हैं उसे क्रेडिटर कहते हैं।
(7) Business Transaction :- यह एक वित्तीय घटना है जो व्यापर से सम्बंधित है जिसका असर कंपनी की वित्तीय स्थिति पर पड़ता है। उदारहण के लिए - माल की खरीद,वेतन,क्रेडिट पर माल को बेचना।
(8) Cash Transaction :- जो नकदी में किये जाते हैं उन्हें कॅश ट्रांजेक्शन कहते हैं।
(9) Credit Transaction :- जो ट्रांजेक्शन क्रेडिट परखिये जाते हैं उन्हें क्रेडिट ट्रांजेक्शन कहते हैं।
(10) Account :- अकाउंट किसी ट्रांजेक्शन या बैंक का स्टेटमेंट होता है, जो किसी एसेट्स,लाइअबिलटीज़, आदमी या खर्चे को प्रभावित करता है।
(11) Ledger :- लेड़गेर एक किताब है जिसमें पर्सनल,रियल, या नॉमिनल के सभी अकाउंट होते हैं, जिनकी एंट्री जर्नल खता किताब में होती है।
Types of Accounts in Hindi:
1) Personal Accounts:- सभी व्यक्ति,सोसायटी,ट्रस्ट,बैंक,और कंपनियों के पर्सनल अकाउंट होते हैं। उदारहण के लिए - Aman Account A/c, Mayank Sales A/c, Gaurav Traders A/c, State Bank of India A/c.
2) Real Accounts:- रियल अकाउंट में सभी एसेट्स और गुड्स शामिल होते हैं। जैसे- Cash A/c, Furniture A/c, Building A/c.
3) Nominal Accounts:- व्यापर से सम्बंधित सभी आय और खर्च नॉमिनल अकाउंट में आते हैं। उदाहरण के लिए - Salary A/c, Rent A/c, Advertisement A/c, Electricity Bill A/c.
Accounts Rules in Hindi :-
दोस्तों जब हम अपने व्यापर से किसी को ट्रांजेक्शन करते हैं तब हमें डेबिट और क्रेडिट का फैसला करना पड़ता है। इसके कुछ नियम हैं आइये इन्हे जानते हैं।
Personal Accounts:- Debit : The Receiver or Credit : The Giver or Creditor.
Real Accounts :- Debit : What comes in Credit : What Goes out.
Nominal Accounts :- Debit : All Expenses & Loss Credit : All Income & Gains.
Tally ERP 9 in Hindi
Double Entry System :-
हर ट्राब्जेक्शन व्यापर को दो तरीकों से प्रभावित करता है। उदारहण के लिए,
(A) गुड्स कैश में ख़रीदा- इस ट्रांजेक्शन में गुड्स बिज़नेस में आ रहा है लेकिन उसी समय कैश बिज़नेस से बाहर जा रहा है।
(B) गुड्स क्रेडिट पर अग्रवाल ट्रेडर्स को बेचा- इस ट्रांजेक्शन में गुड्स बिज़नेस से बाहर जा रहा है ओर उसी समय अग्रवाल ट्रेडर्स हमारे व्यापर का देनदार हो जाता है।
डबल एंट्री सिस्टम के अनुसार- ऐसे सभी बिज़नेस ट्रांजेक्शन की अकाउंट में एंट्री करते समय इसके दो पहलु होते हैं Debit aspect (Receiving) और Credit Aspect (Giving)
दोस्तों इसके बाद अभी Chapter-2 भी आएगा जिसमें में आपको और भी आगे की जानकारी दूंगा
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धन्यवाद
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